मैना का विश्वास, U trust of myna
बरसात का मौसम था आसमान में घने बादल छाए हुए थे। नीम के एक पेड़ पर ढेर सारे कौवे काए काय करते हुए इधर से उधर घूम रहे थे और अपना बसेरा ढूंढ रहे थे।
क्योंकि वे जानते थे कि थोड़ी ही देर में बारिश होने वाली है तभी वह एक छोटी सी मैना आ जाती है सभी कौवे उस पर टूट पड़ते हैं और उस बेचारी मैना को नीम के पेड़ में से चले जाने को कहते हैं।
मैना उन सब से हाथ जोड़कर विनती करती है कि वह आज रात उसे इसी पेड़ में विश्राम करने दें क्योंकि बारिश होने वाली है और अंधेरा भी हो गया है। मुझे अपना घोंसला भी नहीं मिल रहा यह मैना कहती है। कौवे बहुत निर्दई थे।
वह मैना से कहते हैं कि तुम यहां से चले जाओ और उसे यह भी कहते हैं वैसे तो तुम ईश्वर का बहुत नाम लेती हो तो तुम इस बारिश से क्यों डर रही हो तुम ईश्वर के भरोसे ही हमारे घोसले से बाहर निकल जाओ।
इस पर बेचारी मैना को वहां से धक्के मारकर भगा दिया जाता है। मैना भटकते हुए एक आम के पेड़ पर जा पहुंचती है। वही वह खुद को सुरक्षित रखती है रात भर ओले पड़ते हैं। कौवे काय काय करते हुए यहां से वहां भटकते हैं कुछ कौवे तो मर भी जाते हैं।
आम के पेड़ से एक बड़ी टहनी टूटती है और पेड़ के तले में जाकर एक जगह बनाती है और उसी जगह पर मैना रात बिताती है। इसी प्रकार मैना सुरक्षित बच जाती है। अगली सुबह धूप चमकती है और मैना ईश्वर का धन्यवाद करती हुई वहां से उड़ जाती है।
रास्ते में उसे घायल और मारे हुए कौवे मिलते है उनमें से एक कौवा मैना से पूछता है आखिर तुम नन्ही सी जान कैसे जीवित बची इतने भयंकर तूफान से। मैना ने कहा मैं रातभर ईश्वर से प्रार्थना करती रही और उन्होंने ही मेरी रक्षा की है और जो मैं आज आपके सामने जीवित खड़ी हूं यह सब ईश्वर की मेहर हैं।
तो दोस्तों इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि “दुःख में पड़े और असहाय जीव को ईश्वर के अलावा कोई नहीं बचा सकता। इसलिए अपने दुःख में या सुख में हमेशा ईश्वर को ही याद करना चाहिए”।