Motivational Story In Hindi
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अपने सपनों को कभी नहीं छोड़ें।, Never give up on your dreams
एक बार की बात है, एक गरीब औरत थी जिसका नाम आइशा था। वह एक छोटे से गाँव में अपने माता-पिता और छोटे भाई-बहनों के साथ रहती थी।
उसके पिता एक किसान थे, लेकिन खेत बहुत उपजाऊ नहीं था, और वे अक्सर किसी तरह का गुजारा करते थे।
आइशा एक बुद्धिमान और जिज्ञासु लड़की थी। वह अपने आसपास की दुनिया के बारे में जानना पसंद करती थी।
वह एक वैज्ञानिक बनने का सपना देखती थी, लेकिन वह जानती थी कि अपने परिवार की वित्तीय स्थिति के कारण उसे अपना लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा !
एक दिन, आइशा के पिता बीमार पड़ गए। वह काम करने में असमर्थ थे, और परिवार की आय और भी कम हो गई। आइशा को अपने परिवार की मदद करने के लिए स्कूल छोड़ना पड़ा।
आइशा ने अपने परिवार का समर्थन करने के लिए कड़ी मेहनत की। उसने घरों की सफाई और खेतों में काम करने जैसे अजीब-अजीब काम किए।
उसने स्थानीय बाजार में सब्जियां बेचना भी शुरू किया। अपनी व्यस्त दिनचर्या के बावजूद, आइशा ने वैज्ञानिक बनने के अपने सपने को कभी नहीं छोड़ा।
वह देर रात तक पढ़ाई करती थी और स्थानीय पुस्तकालय से किताबें उधार लेती थी। उसने घर पर भी अपने स्वयं के प्रयोग करना शुरू कर दिया।
कई सालों की कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प के बाद, आइशा ने आखिरकार अपने सपने को हासिल कर लिया। वह विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और वैज्ञानिक बन गईं।
उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आइशा की कहानी हम सभी के लिए एक प्रेरणा है। यह दिखाता है कि अगर हम अपने दिमाग में रखते हैं और अपने सपनों को कभी नहीं छोड़ते हैं
तो कुछ भी संभव है। यह भी दिखाता है कि हमारे जुनून का पालन करना महत्वपूर्ण है, भले ही यह मुश्किल हो।
एक ईमानदार लड़का , An honest boy
एक गांव में एक लड़का रहता था। उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उसके मन में विचार आया किसी बड़े शहर में जाकर वह नौकरी करे। वह कलकत्ता गया और नौकरी ढूंढने लगा।
बहुत खोज के बाद उसे एक सेठ के घर में नौकरी मिल गयी।
काम था सेठ को रोज़ 6 घंटे अख़बार और किताब पढ़कर सुनाना लड़के को नौकरी की ज़रूरत थी तो उसने वह नौकरी स्वीकार कर ली।
एक दिन की बात है लड़के को दुकान के कोने में 100-100 के 8 नोट पड़े मिले।
उसने चुपचाप उन्हें अख़बार और किताबो से ढक दिया।
दूसरे दिन रुपयों की खोजबीन हुई। लड़का सुबह जब दुकान पर आया तो उससे पूछा गया।
लड़के ने तुरंत ही प्रसनन्ता से रूपये निकालकर ग्राहक को दे दिए।
वह बहुत ही खुश हुआ। लड़के के ईमानदारी से सबको बहुत प्रसनन्ता हुई।
सेठ भी लड़के से बहुत खुश हुआ। सेठ ने लड़के को पुरस्कार देना चाहा तो लड़के ने लेने से मना कर दिया।
लड़के ने कहा सेठ जी में आगे पढ़ना चाहता हु। पर पैसो के आभाव ने पढ़ नहीं पा रहा। आप कुछ सहयता कर दें।
सेठ ने लड़के की पढ़ाई का प्रवन्ध कर दिया। लड़का बहुत मेहनत से पढता गया।
यही लड़का आगे चलकर बहुत बढ़ा सहित्यकार बना। इसका नाम था – राम नरेश त्रिपाठी। हिंदी साहित्य में इनका बहुत बढ़ा योगदान है।
ईमानदार मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्तम रचना है ।
एक लड़के और पत्थर की कहानी, A story of a boy and a stone
एक बार की बात है सुरज नाम का एक लड़का था, एकदिन सुबह मे सुरज टहल रहा था, तभी उसकी नज़र एक छोटी सी पत्थर पर पड़ी। जैसे ही सुरज ने उस पत्थर को देखा, उसने उसे उठाया ओर जितना ज़ोर से फेंक सकता था, फेंक दिया। पत्थर एक, दो बार उछला और फिर कुछ दूर जाकर रूक गया।
सुरज चकित रह गया, उसने अब तक कभी ऐसा नहीं देखा था । उसने फिर से कोशिश करने का फैसला किया, इस बार सुरज ने पत्थर को ओर जोर से फेंका । इस बार पत्थर पहले से अधिक दूर तक दूर जाकर रूका ।
सुरज इतना उत्साहित था कि वह पत्थर फेंकता रहा, हर बार उसे और जोर से फेंकता रहा। प्रत्येक फेंके जाने पर पत्थर ओर दूर तक जाता रहा, जब तक कि पत्थर सुरज दृष्टि से गायब नहीं हो गया ।
सुरज एक चट्टान पर बैठ गया और सोचने लगा कि अभी क्या हुआ था। उसे एहसास हुआ कि वह छोटा सा पत्थर केवल इसलिए इतनी दूर तक यात्रा करने में सक्षम था क्योंकि उसने उसे ऐसा करने की शक्ति दी थी। उसने जितनी जोर से पत्थर को फेंका, वह उतनी ही दूर तक गया ।
सुरज को एहसास हुआ कि यही सिद्धांत उसके जीवन पर भी लागू होता है। यदि वह महान चीजें हासिल करना चाहता है, तो उसे खुद को ऐसा करने की शक्ति देनी होगी। उन्हें अपने लिए चुनौतीपूर्ण लक्ष्य निर्धारित करना होगा और फिर उन्हें हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी,
सुरज ने खुद से वादा किया कि वह अपने सपनों को कभी नहीं छोड़ेगा। वह कड़ी मेहनत करते रहेंगे और खुद पर विश्वास करना कभी नहीं छोड़ेंगे। वह जानता था कि यदि उसने ऐसा किया, तो वह सब कुछ हासिल कर सकता है जो-जो उसने ठाना है।
आप जो भी ठान लोगे उसे हासिल कर सकते हैं, बशर्ते आप खुद पर विश्वास रखें और कभी हार न मानें। आप जितनी मेहनत करेंगे, उतना ही आगे बढ़ेंगे। अपने लिए चुनौतीपूर्ण लक्ष्य निर्धारित करने से कभी नही डरें। खुद पर विश्वास रखें और अपने सपनों को कभी न छोड़ें।
दिमाग का इस्तेमाल कर पक्ष में करें परिस्थितियाँ, Use mind create in side conditions
एक शेर जंगल में शिकार पर निकला था।
एक लोमड़ी अचानक उसके सामने आ गयी। लोमड़ी को लगा कि अब उसे कोई नहीं बचा सकता है, लेकिन उसने हार नहीं मानी और अपनी जान बचने के लिए एक तरकीब सोची।
लोमड़ी ने शेर से कड़े शब्दों में कहा - तुम्हारे पास इतनी ताकत नहीं कि मुझे मार सको।
यह सुनकर शेर थोड़ा अचंभित हुआ।
उसने पूछा - तुम ऐसा कैसे कह सकती हो ? लोमड़ी ने अपनी आवाज और ऊँची करते हुए बोली - मैं तुम्हें सच बता देती हूँ। ईश्वर ने स्वयं मुझे इस जंगल और जंगल में रहने वाले सभी जानवरों का राजा बनाया है।
यदि तुमने मुझे मारा तो यह ईश्वर के विरुद्ध होगा और तुम भी मर जाओगे।
कुछ देर चुप रहने के बाद लोमड़ी ने कहा - अगर विश्वास नहीं हो रहा है तो तुम मेरे साथ जंगल घूमने चलो। तुम मेरे पीछे चलना और देखना कि जंगल के जानवर मुझसे कितना डरते हैं।
शेर इसके लिए तैयार हो गया।
लोमड़ी निडर होकर शेर के आगे-आगे चलने लगी। लोमड़ी के पीछे शेर को चलते देख कर जंगल के दूसरे जानवर डर कर भाग गये।
कुछ देर जंगल में घूमने के बाद लोमड़ी ने शेर से सवाल किया - क्या तुम्हें मेरी बात पर विश्वास हुआ ?
कुछ देर चुप रहने के बाद शेर ने कहा - तुम ठीक कहती हो। जंगल की राजा तुम्हीं है।
परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत क्यों न हो हम अपने दिमाग का इस्तेमाल कर उसे अपने पक्ष में कर सकते हैं। हमारा दिमाग प्रोग्राम के आधार पर काम करने वाला कंप्यूटर नहीं है।
दिमाग को आउट ऑफ़ बॉक्स सोचने की क्षमता है। हर समस्या का समाधान तलाशने की ताकत है, यह तभी संभव होगा जब हूँ विपरीत परिस्थितियाँ में भी अपना धैर्य बरकरार रखेंगे।
शार्क और चारा मछलियाँ, Shark and bait fishes
अपने शोध के दौरान एक समुद्री जीवविज्ञानी ने पानी से भरे एक बड़े टैंक में शार्क को डाला. कुछ देर बाद उसने उसमें कुछ चारा मछलियाँ डाल दी। चारा मछलियों को देखते ही शार्क तुरंत तैरकर उनकी ओर गई और उन पर हमला कर उन्हें खा लिया। समुद्री जीवविज्ञानी ने कुछ और चारा मछलियाँ टैंक में डालीं और वे भी तुरंत शार्क का आहार बन गईं। अब समुद्री जीवविज्ञानी ने एक कांच का मजबूत पारदर्शी टुकड़ा उस टैंक के बीचों-बीच डाल दिया। अब टैंक दो भागों में बंट चुका था। एक भाग में शार्क थी। दूसरे भाग में उसने कुछ चारा मछली डाल दीं। विभाजक पारदर्शी कांच से शार्क चारा मछलियों को देख सकती थी। चारा मछलियों के देख शार्क फिर से उन पर हमला करने के लिए उस ओर तैरी। लेकिन कांच के विभाजक टुकड़े से टकरा कर रह गई। उसने फिर से कोशिश की। लेकिन कांच के टुकड़े के कारण वह चारा मछलियों तक नहीं पहुँच सकी।
शार्क ने दर्जनों बार पूरी आक्रामकता के साथ चारा मछलियों पर हमला करने की कोशिश की। लेकिन बीच में कांच का टुकड़ा आ जाने के कारण वह असफल रही. कई दिनों तक शार्क उन कांच के विभाजक के पार जाने का प्रयास करती रही. लेकिन सफल न हो सकी. अंततः थक-हारकर उसने एक दिन हमला करना छोड़ दिया और टैंक के अपने भाग में रहने लगी। कुछ दिनों बाद समुद्री जीवविज्ञानी ने टैंक से वह कांच का विभाजक हटा दिया. लेकिन शार्क ने कभी उन चारा मछलियों पर हमला नहीं किया क्योंकि एक काल्पनिक विभाजक उसके दिमाग में बस चुका था और उसने सोच लिया था कि वह उसे पार नहीं कर सकती।
जीवन में असफ़लता का सामना करते-करते कई बार हम अंदर से टूट जाते हैं और हार मान लेते हैं। हम सोच लेते हैं कि अब चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, सफ़लता हासिल करना नामुमकिन है और उसके बाद हम कभी कोशिश ही नहीं करते। जबकि सफ़लता प्राप्ति के लिए अनवरत प्रयास आवश्यक है। परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं। इसलिये अतीत की असफ़लता को दिमाग पर हावी न होने दें और पूरी लगन से फिर मेहनत करें। सफलता आपके कदम चूमेगी।
कुछ भी संभव है, Anything is possible
एक बार की बात है एक रवि नाक का युवक था, जिसने देश के सबसे ऊंचे पहाड़ पर चढ़ने का सपना देखा था।
उन्होंने अपने बुजुर्गों से पहाड़ के बारे में कहानियाँ सुना करता था, जो कहते थे कि पहाड़ो पर चढ़ाई करना बहुत ही खतरनाक और कठिन काम है ।
लेकिन रवि ने पहाड़ की शीर्ष पर पहुंचने की ठान ली थी। उसने एक सुबह जल्दी अपनी यात्रा शुरू की, और वह कई दिनों तक चलता रहा।
रास्ता कठिन और जोखिम भरा था, और रवि को अक्सर चट्टानों और पत्थरों पर चढ़ना पड़ता था। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी ।
एक दिन रवि पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंच गया। वह थका हुआ और कमजोर महसूस कर रहा था, लेकिन वह खुशी से भी भरा हुआ था।
उसने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया, और उसने खुद को साबित कर दिया था कि वह जो कुछ भी ठान लेता है उसे पूरा किए बिना नही रूकती ।
जैसे ही वह युवक पहाड़ की चोटी पर खड़ा हुआ, उसनेज़मीन की ओर देखा। उसने हर दिशा में मीलों तक देखा,
और उसे शांति और उपलब्धि की अनुभूति महसूस हुई। वह जानता था कि वह इस पल को कभी नहीं भूलेगा।
रवि की कहानी हमे ये याद दिलाती है कि अगर आप ठान लें तो कुछ भी संभव है।
चुनौती चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, अगर आप कभी हार नहीं मानते, तो आप अंततः अपने लक्ष्य तक पहुंच ही जाएगे ।
अपने सपनों को कभी मत छोड़ो, चाहे वे कितने भी कठिन क्यों न लगें। कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प से कुछ भी संभव है।
बुद्धिमानी से दिल जाता राजा का, Wisely the heart goes onof the king
सदियों पहले की बात है। राजा सूर्यसेन प्रतापगढ़ का राजा था।
राजा की इकलौती संतान उसकी पुत्री भानुमति थी। वह अत्यंत सुंदर थी।
भानुमति के विवाह योग्य होने पर राजा को पुत्री के लिए एक योग्य वर की तलाश थी।
राजा एक ऐसा बुद्धिमान वर खोजना चाहता था जो उसकी पुत्री से विवाह के पश्चात उसके राज्य को भी संभाल सके।
राजा ने ऐलान किया कि जो कोई भी राजकुमारी से विवाह करना चाहता है वह संसार की सबसे मूलयवान वस्तु लेकर आए।
अनेक राजकुमार कई मुलयमान वस्तुएं लेकर राजा के समक्ष उपस्थित होते रहते थे किन्तु राजा ने सबको नकार दिया। राजा को यकीन था कि एक दिन कोई न कोई योग्य युवक इस शर्त को जरूर पूरा करेगा।
एक दिन उसी राजा के राज्य के एक गांव के किसान के पुत्र रघु को राजा के इस शर्त के बारे में पता लगा।
रघु बहुत बुद्धिमान था। उसने विवेकपूर्ण तरिके से सोचा और फिर एक दिन तीन वस्तुएं लेकर राजा के दरबार में हाजिर हो गया।
राजा से अनुमति पाकर वह बोला - मैं दुनिया की तीन सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तुएं लाया हूँ।
मेरे हाथ में यह मिट्टी है जो हमें अन्न देती है, यह जल है जो अमूल्य है और इसके बिना जीवन संभव नहीं है तीसरी वस्तु पुस्तक है।
पुस्तकें ज्ञान का आधार होती हैं और ज्ञान के बिना सृष्टि का संचालन असंभव है।
रघु की बुद्धिमता से राजा प्रभावित हुआ और उसने भानुमति का विवाह उससे करके उसे राज्य का योग्य उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
सार यह है कि बुद्धि, विवेक और ज्ञान से कठिन से कठिन प्रश्नों का हल निकल जाता है।
दो पक्षियों की कहानी, A tale of two birds
एक बार की बात है, दो पक्षी एक ऊँचे पेड़ पर घोंसले में रहते थे। दोनो पक्षी एक दुसरे से बिलकुल अलग थे। एक पक्षी छोटा और डरपोक था, जबकि दूसरा पक्षी बड़ा और साहसी था।
छोटा पक्षी हमेशा हर चीज़ से डरता था। वह हवा, बारिश और यहाँ तक कि जंगल के अन्य जानवरों से भी डरता था। दूसरी ओर, बड़ा पक्षी किसी भी चीज़ से नहीं डरता था। तूफ़ान आने पर भी यह आसमान में ऊंची उड़ान भरते था ।
अचानक एक दिन जंगल में तूफ़ान आया। बहुत तेज हवा चल रही थी और बारिश भी हो रही थी, छोटा पक्षी बहुत भयभीत था। वह घोंसले के एक कोने मे डरकर बैठ गया, हिलने-डुलने से बहुत डरता था। दूसरी ओर बड़ा पक्षी डरा नहीं था। वह घोंसले से बाहर उड़ गया और तूफान में चला गया।
बड़ा पक्षी हवा पर सवार होकर आकाश में ऊँचा उड़ गया। यह बहुत ही खुश था । बड़े पक्षी ने कभी इतना स्वतंत्र महसूस नहीं किया था। थोड़ी देर बाद तूफान थम गया। बड़ा पक्षी वापस घोंसले मे लौटकर आया और छोटे पक्षी को अपने साहसिक कार्य के बारे में बताया।
छोटा पक्षी चकित रह गया। उसने कभी सोचा भी नहीं था कि तूफ़ान में उड़ना इतना मज़ेदार हो सकता है , छोटे पक्षी ने बड़े पक्षी से उसे तूफ़ान में उड़ना सिखाने को कहा। बड़ा पक्षी सहमत हो गया और दोनों पक्षियों ने एक साथ तूफान में उड़ने का अभ्यास किया।
आख़िरकार, छोटी चिड़िया के अंदर जो डर था , वो साहस मे बदल गया ,तूफान आने पर भी यह आसमान में ऊंची उड़ान भर सकता था। छोटा पक्षी तूफान में उड़ना सिखाने के लिए बड़े पक्षी का बहुत आभारी था।
दोनों पक्षी एक साथ घोंसले में रहते रहे। वे अभी भी बहुत अलग थे, लेकिन वे सबसे अच्छे दोस्त भी थे। उन्होंने सीखा कि अलग होना ठीक है और हम सभी एक-दूसरे से सीख सकते हैं।
कहानी का सीख यह है कि अलग होना ठीक है। हम सभी को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि हम कौन हैं, और हमें दूसरों में अंतर की सराहना करना सीखना चाहिए। हम सभी एक-दूसरे से सीख सकते हैं, और हम सभी दोस्त बन सकते हैं, भले ही हम अलग-अलग हों।
आखिरी प्रयास, Last attempt
एक समय की बात है। एक राज्य में एक प्रतापी राजा राज करता था। एक दिन उसके दरबार में एक विदेशी आगंतुक आया और उसने राजा को एक सुंदर पत्थर उपहार में दिया। राजा वह पत्थर देख बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण कर उसे राज्य के मंदिर में स्थापित करने का निर्णय लिया और प्रतिमा निर्माण का कार्य राज्य के महामंत्री को सौंप दिया।
महामंत्री गाँव के सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार के पास गया और उसे वह पत्थर देते हुए बोला, “महाराज मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं। सात दिवस के भीतर इस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा तैयार कर राजमहल पहुँचा देना। इसके लिए तुम्हें 50 स्वर्ण मुद्रायें दी जायेंगी।” 50 स्वर्ण मुद्राओं की बात सुनकर मूर्तिकार ख़ुश हो गया और महामंत्री के जाने के उपरांत प्रतिमा का निर्माण कार्य प्रारंभ करने के उद्देश्य से अपने औज़ार निकाल लिए। अपने औज़ारों में से उसने एक हथौड़ा लिया और पत्थर तोड़ने के लिए उस पर हथौड़े से वार करने लगा। किंतु पत्थर जस का तस रहा। मूर्तिकार ने हथौड़े के कई वार पत्थर पर किये, किंतु पत्थर नहीं टूटा।
पचास बार प्रयास करने के उपरांत मूर्तिकार ने अंतिम बार प्रयास करने के उद्देश्य से हथौड़ा उठाया, किंतु यह सोचकर हथौड़े पर प्रहार करने के पूर्व ही उसने हाथ खींच लिया कि जब पचास बार वार करने से पत्थर नहीं टूटा, तो अब क्या टूटेगा। वह पत्थर लेकर वापस महामंत्री के पास गया और उसे यह कह वापस कर आया कि इस पत्थर को तोड़ना नामुमकिन है। इसलिए इससे भगवान विष्णु की प्रतिमा नहीं बन सकती। महामंत्री को राजा का आदेश हर स्थिति में पूर्ण करना था। इसलिए उसने भगवान विष्णु की प्रतिमा निर्मित करने का कार्य गाँव के एक साधारण से मूर्तिकार को सौंप दिया। पत्थर लेकर मूर्तिकार ने महामंत्री के सामने ही उस पर हथौड़े से प्रहार किया और वह पत्थर एक बार में ही टूट गया। पत्थर टूटने के बाद मूर्तिकार प्रतिमा बनाने में जुट गया। इधर महामंत्री सोचने लगा कि काश, पहले मूर्तिकार ने एक अंतिम प्रयास और किया होता, तो सफ़ल हो गया होता और 50 स्वर्ण मुद्राओं का हक़दार बनता।
मित्रों, हम भी अपने जीवन में ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होते रहते हैं। कई बार किसी कार्य को करने के पूर्व या किसी समस्या के सामने आने पर उसका निराकरण करने के पूर्व ही हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है और हम प्रयास किये बिना ही हार मान लेते हैं। कई बार हम एक-दो प्रयास में असफलता मिलने पर आगे प्रयास करना छोड़ देते हैं। जबकि हो सकता है कि कुछ प्रयास और करने पर कार्य पूर्ण हो जाता या समस्या का समाधान हो जाता। यदि जीवन में सफलता प्राप्त करनी है, तो बार-बार असफ़ल होने पर भी तब तक प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिये, जब तक सफ़लता नहीं मिल जाती। क्या पता, जिस प्रयास को करने के पूर्व हम हाथ खींच ले, वही हमारा अंतिम प्रयास हो और उसमें हमें कामयाबी प्राप्त हो जाये।
एक किसान की कहानी, Story of a farmer
एक किसान था जिसके दो बेटे थे ।
वह बहुत ही आलसी और निकम्मे थे, वह अपने पिता को कामकाज में हाथ बठाने के बजाए आलस किया करते थे, इधर-उधर घूमते-फिरते थे।
किसान को अपने बेटों की बहुत फिकर थी, वोह सोचते थे की मेरे मरने के बाद इनका क्या होगा, यह अपना पेट कैसे भरेंगे, अपने परिवार को कैसे संभाल पायेंगे।
एक दिन किसान की हालत बहुत ही गंभीर थी, कहने का मतलब, किसान मरने की हालत में था।
तभी किसान ने अपने दोनों बेटो को बुलाकर उनसे कहां की, हमारे खेत में एक खजाना गढ़ा हुआ है, लेकिन वह किस जगह है उसकी जानकारी मुझे भी नहीं है, लेकिन खोदने बाद तुमे वो खजाना मिल जाएगा।
इतना कहकर किसान भगवान को प्यारे हो गये।
खजाने की खबर सुनकर दोनो बेटों के मन में लालच आ गया और वो दोनों खेत पर चले गये और खेत को खोदने लगे, खजाने के लालच में कुछ ही दिनों में पूरे खेत को खोदने के बाद वह घर जाकर बैठ गए और वह अपने पिता को कोसने लगे, इसी तरह कुछ महीने बित गए और वर्षा ऋतु का आगमन हुआ।
किसान के बेटों के पास पेट भरने के लिए सिर्फ एक ही जरिया था वोह है खेती।
तब बाकी किसानो की तरह किसान के बेटो ने खेत में बिज बोने शुरु कर दिए।
वर्षा का पाणी पाकर वह बिज अंकुशित हुए और देखते ही देखते खेत लहराने लगे।
ऐसा लग रहा था की हवा के झोके से लहरा रहा था।
यह देखकर किसान के बेटे बहुत खुश हो गये, उन को समझ आ गया की परिश्रम ही सच्चा धन होता है और वो उसी तरह से अपने पिता के शब्दो का मोल भी समझ गये और अपने कामकाज में लग गये।