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  • कुछ भी संभव है, Anything is possible

    एक बार की बात है एक रवि नाक का युवक था, जिसने देश के सबसे ऊंचे पहाड़ पर चढ़ने का सपना देखा था।
    उन्होंने अपने बुजुर्गों से पहाड़ के बारे में कहानियाँ सुना करता था, जो कहते थे कि पहाड़ो पर चढ़ाई करना बहुत ही खतरनाक और कठिन काम है ।
    लेकिन रवि ने पहाड़ की शीर्ष पर पहुंचने की ठान ली थी। उसने एक सुबह जल्दी अपनी यात्रा शुरू की, और वह कई दिनों तक चलता रहा।
    रास्ता कठिन और जोखिम भरा था, और रवि को अक्सर चट्टानों और पत्थरों पर चढ़ना पड़ता था। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी ।
    एक दिन रवि पहाड़ की सबसे ऊंची चोटी पर पहुंच गया। वह थका हुआ और कमजोर महसूस कर रहा था, लेकिन वह खुशी से भी भरा हुआ था।
    उसने अपना लक्ष्य हासिल कर लिया, और उसने खुद को साबित कर दिया था कि वह जो कुछ भी ठान लेता है उसे पूरा किए बिना नही रूकती ।
    जैसे ही वह युवक पहाड़ की चोटी पर खड़ा हुआ, उसनेज़मीन की ओर देखा। उसने हर दिशा में मीलों तक देखा,
    और उसे शांति और उपलब्धि की अनुभूति महसूस हुई। वह जानता था कि वह इस पल को कभी नहीं भूलेगा।
    रवि की कहानी हमे ये याद दिलाती है कि अगर आप ठान लें तो कुछ भी संभव है।
    चुनौती चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, अगर आप कभी हार नहीं मानते, तो आप अंततः अपने लक्ष्य तक पहुंच ही जाएगे ।
    अपने सपनों को कभी मत छोड़ो, चाहे वे कितने भी कठिन क्यों न लगें। कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प से कुछ भी संभव है।

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  • आर्यन और श्रेया की प्रेम कहानी, Love story of Aryan and shreya

    वो एक लड़का था, जिसका नाम आर्यन था, और एक लड़की जिसका नाम श्रेया था।
    वे दोनों एक ही कॉलेज में पढ़ते थे और एक-दूसरे के साथ बहुत अच्छे दोस्त थे।
    धीरे-धीरे उनकी दोस्ती में दिल के क़रीब एहसासों ने जगह बना ली।
    एक दिन, एक पार्टी में, श्रेया एक अनहोनी की घटना का शिकार हो गई और आर्यन उसके साथ था।
    उस दिन से, उनकी दोस्ती एक प्यार भरी कहानी में बदल गई।
    दोनों एक-दूसरे के समर्थन में खड़े रहने लगे और उनके बीच एक ख़ास बंधन हो गया।
    लेकिन ख़ुशी की एक समय की कहानी थी, क्योंकि जिंदगी कभी-कभी अपने रंग बदल देती है।
    एक दिन, एक घातक रोग श्रेया को पकड़ लिया और डॉक्टर ने उसे बताया कि
    उसका समय कम हो गया है।
    आर्यन ने दिल के दर्द के साथ उसे समर्थन दिया, लेकिन श्रेया के ह्रदय में एक अजब भावना थी - वह चाहती थी कि वह अपने प्यार को खो दे जिससे वह इस दर्द से मुकाबला कर सके।
    उसकी दिल की ये अभिलाषा आर्यन को जानने में थी, और वह श्रेया के साथ जितना भी समय बचा था,
    उसे उसकी प्यार भरी ख़्वाहिश पूरी करने का फैसला किया।
    वे एक बार फिर साथ आए, ख़ुद को इस प्यार में खो दिया, और अपने दिल की बातें आपसी शर्तों के बिना कह दी।
    श्रेया की आंखों में ख़ुशी और दर्द दोनों दिख रहे थे, क्योंकि उसे पता था कि उसके प्यार की अंतिम ख़्वाहिश पूरी हो रही थी।
    उनकी ख़ुशियों और दुखों से भरी एक साथ गुजरी रात के बाद, श्रेया ने अपनी आंखें बंद कर ली।
    उसके अंतिम समय में, उसका अंतिम मुस्कान आर्यन को थे।
    उसके प्रियजनों ने देखा कि वह ख़ुश थी, क्योंकि उसने अपने प्यार को पाने का एक अद्भुत सफ़र पूरा कर लिया था।
    आर्यन अब अकेले थे, लेकिन उसके दिल में श्रेया के प्यार की यादें हमेशा जीवित रहेंगी।
    उनकी प्रेम कहानी दर्द भरी थी, लेकिन यह सिखाती थी कि प्यार असली जीवन है, जो समय के साथ भी आजीवन बाकी रहता है।
    आशीर्वाद गाँव में एक सुंदरी लड़की थी, जिनका नाम मीरा था।
    वह गाँव के पास की सुंदर पहाड़ियों में रहती थी।
    एक दिन, उसने पहाड़ी छोड़कर नदी के किनारे एक छोटे से गाँव में घुमने का फैसला किया।
    वहाँ पहुंचकर, उसने एक युवक से मिली, जिनका नाम आर्जुन था।
    उनकी पहली मुलाकात ही कुछ खास सी थी, जैसे कि वे पहले से ही एक-दूसरे को जानते थे।
    वे एक-दूसरे के साथ बिताए गए समय में खो गए और एक-दूसरे की कहानियों को सुनने लगे।
    दिन बितते गए और मीरा और आर्जुन के बीच की मुलाकातें बढ़ती गईं।
    वे एक-दूसरे के साथ ज्यादा समय बिताने लगे और उनकी मिलनसर बातों में मिठास आ गई।
    एक दिन, जब वे नदी के किनारे घूम रहे थे, आर्जुन ने अपने दिल की बात कह दी कि वह मीरा से प्यार करता है।
    मीरा थोड़ी सी हकली और आश्चर्यचकित थी, लेकिन फिर उसने भी अपनी भावनाओं को साझा किया कि वह भी
    आर्जुन से मोहब्बत करती है।
    उनकी प्यार भरी कहानी शुरू हो गई, और उन्होंने एक-दूसरे के साथ अपनी जिंदगी की सबसे ख़ूबसूरत यात्रा शुरू की।
    उनकी प्यार और समर्पण भरी कहानी गाँव के लोगों के दिलों में बस गई, और वे सबको प्यार की मिसाल दिखाने लगे।

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  • एक ईमानदार लड़का , An honest boy

    एक गांव में एक लड़का रहता था। उसके घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उसके मन में विचार आया किसी बड़े शहर में जाकर वह नौकरी करे। वह कलकत्ता गया और नौकरी ढूंढने लगा।
    बहुत खोज के बाद उसे एक सेठ के घर में नौकरी मिल गयी।
    काम था सेठ को रोज़ 6 घंटे अख़बार और किताब पढ़कर सुनाना लड़के को नौकरी की ज़रूरत थी तो उसने वह नौकरी स्वीकार कर ली।

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    एक दिन की बात है लड़के को दुकान के कोने में 100-100 के 8 नोट पड़े मिले।
    उसने चुपचाप उन्हें अख़बार और किताबो से ढक दिया।
    दूसरे दिन रुपयों की खोजबीन हुई। लड़का सुबह जब दुकान पर आया तो उससे पूछा गया।
    लड़के ने तुरंत ही प्रसनन्ता से रूपये निकालकर ग्राहक को दे दिए।
    वह बहुत ही खुश हुआ। लड़के के ईमानदारी से सबको बहुत प्रसनन्ता हुई।
    सेठ भी लड़के से बहुत खुश हुआ। सेठ ने लड़के को पुरस्कार देना चाहा तो लड़के ने लेने से मना कर दिया।
    लड़के ने कहा सेठ जी में आगे पढ़ना चाहता हु। पर पैसो के आभाव ने पढ़ नहीं पा रहा। आप कुछ सहयता कर दें।
    सेठ ने लड़के की पढ़ाई का प्रवन्ध कर दिया। लड़का बहुत मेहनत से पढता गया।
    यही लड़का आगे चलकर बहुत बढ़ा सहित्यकार बना। इसका नाम था – राम नरेश त्रिपाठी। हिंदी साहित्य में इनका बहुत बढ़ा योगदान है।
    ईमानदार मनुष्य ईश्वर की सर्वोत्तम रचना है ।

  • आखिरी प्रयास, Last attempt

    एक समय की बात है। एक राज्य में एक प्रतापी राजा राज करता था। एक दिन उसके दरबार में एक विदेशी आगंतुक आया और उसने राजा को एक सुंदर पत्थर उपहार में दिया। राजा वह पत्थर देख बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा का निर्माण कर उसे राज्य के मंदिर में स्थापित करने का निर्णय लिया और प्रतिमा निर्माण का कार्य राज्य के महामंत्री को सौंप दिया।

    महामंत्री गाँव के सर्वश्रेष्ठ मूर्तिकार के पास गया और उसे वह पत्थर देते हुए बोला, “महाराज मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करना चाहते हैं। सात दिवस के भीतर इस पत्थर से भगवान विष्णु की प्रतिमा तैयार कर राजमहल पहुँचा देना। इसके लिए तुम्हें 50 स्वर्ण मुद्रायें दी जायेंगी।” 50 स्वर्ण मुद्राओं की बात सुनकर मूर्तिकार ख़ुश हो गया और महामंत्री के जाने के उपरांत प्रतिमा का निर्माण कार्य प्रारंभ करने के उद्देश्य से अपने औज़ार निकाल लिए। अपने औज़ारों में से उसने एक हथौड़ा लिया और पत्थर तोड़ने के लिए उस पर हथौड़े से वार करने लगा। किंतु पत्थर जस का तस रहा। मूर्तिकार ने हथौड़े के कई वार पत्थर पर किये, किंतु पत्थर नहीं टूटा।


    पचास बार प्रयास करने के उपरांत मूर्तिकार ने अंतिम बार प्रयास करने के उद्देश्य से हथौड़ा उठाया, किंतु यह सोचकर हथौड़े पर प्रहार करने के पूर्व ही उसने हाथ खींच लिया कि जब पचास बार वार करने से पत्थर नहीं टूटा, तो अब क्या टूटेगा। वह पत्थर लेकर वापस महामंत्री के पास गया और उसे यह कह वापस कर आया कि इस पत्थर को तोड़ना नामुमकिन है। इसलिए इससे भगवान विष्णु की प्रतिमा नहीं बन सकती। महामंत्री को राजा का आदेश हर स्थिति में पूर्ण करना था। इसलिए उसने भगवान विष्णु की प्रतिमा निर्मित करने का कार्य गाँव के एक साधारण से मूर्तिकार को सौंप दिया। पत्थर लेकर मूर्तिकार ने महामंत्री के सामने ही उस पर हथौड़े से प्रहार किया और वह पत्थर एक बार में ही टूट गया। पत्थर टूटने के बाद मूर्तिकार प्रतिमा बनाने में जुट गया। इधर महामंत्री सोचने लगा कि काश, पहले मूर्तिकार ने एक अंतिम प्रयास और किया होता, तो सफ़ल हो गया होता और 50 स्वर्ण मुद्राओं का हक़दार बनता।

    मित्रों, हम भी अपने जीवन में ऐसी परिस्थितियों से दो-चार होते रहते हैं। कई बार किसी कार्य को करने के पूर्व या किसी समस्या के सामने आने पर उसका निराकरण करने के पूर्व ही हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है और हम प्रयास किये बिना ही हार मान लेते हैं। कई बार हम एक-दो प्रयास में असफलता मिलने पर आगे प्रयास करना छोड़ देते हैं। जबकि हो सकता है कि कुछ प्रयास और करने पर कार्य पूर्ण हो जाता या समस्या का समाधान हो जाता। यदि जीवन में सफलता प्राप्त करनी है, तो बार-बार असफ़ल होने पर भी तब तक प्रयास करना नहीं छोड़ना चाहिये, जब तक सफ़लता नहीं मिल जाती। क्या पता, जिस प्रयास को करने के पूर्व हम हाथ खींच ले, वही हमारा अंतिम प्रयास हो और उसमें हमें कामयाबी प्राप्त हो जाये।

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  • अर्जुन के तीर हुए निष्प्रभावी, Arjuna arrow made ineffective

    महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से परमवीर सुधन्वा अर्जुन से युद्ध कर रहे थे।
    हार-जीत का फैसला न होते देख यह तय किया गया कि तीन बाणों में युद्ध का निर्णय होगा, या तो किसी का वध होगा, अन्यथा दोनों पक्ष युद्ध बंद कर पराजय स्वीकार करेंगे।
    कृष्ण पांडवों की ओर थे, अत: उन्होंने अर्जुन की सहायता के लिए हाथ में जल लेकर संकल्प किया कि गोवर्धन उठाने और घप्रज की रक्षा करने का पुण्य मैं अर्जुन के बाण के साथ संयोजित करता हूं।
    इससे अर्जुन का आग्नेयास्त्र और भी सशक्त हो गया।
    आग्नेयास्त्र का सामना करने के लिए सुधन्वा ने संकल्प लिया कि एक पत्ती ब्रत पालने का मेरा पुण्य मेरे अस्त्र के साथ जुडे। दोनों बाण आकाश में टकराए।
    सुधन्वा के बाण ने अर्जुन का अस्त्र काट दिया।
    दूसरी बार अर्जुन को अपना पुण्य प्रदान करते हुए कृष्ण बोले कि गज को बचाने तथा द्रोपदी की लाज बचाने का पुण्य मैं अर्जुन के बाण के साथ जोड़ता हूं।
    सुधन्वा ने उज्जवल चरित्र का पुण्य अपने अस्त्र में जोड़ा। अर्जुन का बाण पुनः कट गया।
    तीसरी बार कृष्ण ने बार-बार अवतार लेकर धरती का भार उतारने का पुण्य अर्जुन के बाण के साथ जोडा।
    तो सुधन्वा ने संकल्प किया कि मेरे परमार्थ का पुण्य मेरे अस्त्र में जुडे। सुधन्वा का बाण फिर विजयी हुआ।
    अर्जुन ने पराजय मानी और कृष्ण ने सुधन्वा से कहा- 'हे सद्‌गृहस्थ! तुमने सिद्ध कर दिया कि कर्तव्यपरायण गृहस्थ किसी तपस्वी से कम नहीं होता।
    ' वस्तुतः भाग्यवश जो भी भूमिका मिले, उसका ईमानदारी से निर्वाह अपार पुण्यों का सृजन करता है।

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  • बुद्धिमानी से दिल जाता राजा का, Wisely the heart goes onof the king

    सदियों पहले की बात है। राजा सूर्यसेन प्रतापगढ़ का राजा था।
    राजा की इकलौती संतान उसकी पुत्री भानुमति थी। वह अत्यंत सुंदर थी।
    भानुमति के विवाह योग्य होने पर राजा को पुत्री के लिए एक योग्य वर की तलाश थी।
    राजा एक ऐसा बुद्धिमान वर खोजना चाहता था जो उसकी पुत्री से विवाह के पश्चात उसके राज्य को भी संभाल सके।
    राजा ने ऐलान किया कि जो कोई भी राजकुमारी से विवाह करना चाहता है वह संसार की सबसे मूलयवान वस्तु लेकर आए।
    अनेक राजकुमार कई मुलयमान वस्तुएं लेकर राजा के समक्ष उपस्थित होते रहते थे किन्तु राजा ने सबको नकार दिया। राजा को यकीन था कि एक दिन कोई न कोई योग्य युवक इस शर्त को जरूर पूरा करेगा।
    एक दिन उसी राजा के राज्य के एक गांव के किसान के पुत्र रघु को राजा के इस शर्त के बारे में पता लगा।
    रघु बहुत बुद्धिमान था। उसने विवेकपूर्ण तरिके से सोचा और फिर एक दिन तीन वस्तुएं लेकर राजा के दरबार में हाजिर हो गया।
    राजा से अनुमति पाकर वह बोला - मैं दुनिया की तीन सबसे महत्त्वपूर्ण वस्तुएं लाया हूँ।
    मेरे हाथ में यह मिट्टी है जो हमें अन्न देती है, यह जल है जो अमूल्य है और इसके बिना जीवन संभव नहीं है तीसरी वस्तु पुस्तक है।
    पुस्तकें ज्ञान का आधार होती हैं और ज्ञान के बिना सृष्टि का संचालन असंभव है।
    रघु की बुद्धिमता से राजा प्रभावित हुआ और उसने भानुमति का विवाह उससे करके उसे राज्य का योग्य उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
    सार यह है कि बुद्धि, विवेक और ज्ञान से कठिन से कठिन प्रश्नों का हल निकल जाता है।

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  • पहली मुलाकात में हुआ प्यार, Love happened in first meet

    विक्रम शहर में एक नए आवासी थे।
    उन्होंने हाल ही में नौकरी शुरू की थी और अपने नए जीवन का आनंद उठा रहे थे।
    एक दिन, उनके दोस्तों ने उन्हें एक सोशल गेटरिंग में बुलाया, जो शहर के नए लोगों के बीच में मिलने का एक अच्छा मौका था।
    विक्रम ने उनकी सलाह मानते हुए गेटरिंग में शामिल होने का निर्णय लिया।
    उन्होंने अपना सबसे अच्छा परिधान पहना और आया।
    जब उन्होंने वहाँ पहुँचकर देखा, तो वे हीरोइनों की तरह खिल रहे आतिथ्य देखकर थोड़े से डरे।
    उन्होंने धीरे-धीरे उस सभी के बीच अपनी जगह ढूंढ ली और वहाँ खड़े हो गए।
    उनके दोस्त उन्हें दिलासा देते हुए बताए कि वह बिल्कुल नए लोगों से मिलने के लिए डरने की
    बजाय उनका स्वागत करने में खुशी खुशी अपनी जगह पा सकते हैं।
    जब गेटरिंग शुरू हुई, तो विक्रम ने अपनी हिचकिचाहट को सामने रखकर एक बातचीत में शामिल हो गए।
    वे धीरे-धीरे बातचीत के माध्यम से अपनी पहचान बनाने में सफल हुए और
    अन्य लोगों से मिलकर आत्मविश्वास पैदा करने लगे।
    चारों ओर बातचीत का माहौल गरम हो गया और विक्रम की नजरें एक खूबसूरत लड़की पर जा पड़ीं,
    जो भी वही अपने दोस्तों के साथ खड़ी थी।
    विक्रम की दिल में एक अजीब सी छलकन उठी, जिसे वह पहली बार महसूस कर रहे थे।
    देर रात, जब गेटरिंग की अंतिम तिथि आई, तो विक्रम ने साहस जुटाया और
    उस लड़की से बात करने का निर्णय लिया।
    वह उसके पास गया और मुस्कान के साथ नमस्ते कहा।
    "हाय, मैं विक्रम। तुम्हारा नाम क्या है ?" विक्रम ने कहा।
    "मैं रिया, खुशी हुई विक्रम।" रिया ने पूरी मित्रभावना के साथ जवाब दिया।
    उनकी पहली मुलाकात के बाद, दोनों ने धीरे-धीरे एक-दूसरे से अधिक बात करने लगे,
    और उनकी यह मुलाकात एक नई शुरुआत की थी,
    जिसने उनके जीवन को बदल दिया।

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  • लिफाफे को दबाएं, Push the envelope

    एक बार एक सर, क्लास में इंटर हुए और सारे बच्चों की तरफ देखने लगे। थोड़ी देर के बाद उन्होंने अपने हाथ में एक चौक लिया और बोर्ड पर एक लकीर बना दिया, होरिजेंटल टाइप की एक लाइन बना दी।
    और सारे बच्चों से बोला कि ” बच्चों इस लाइन को छोटी करके बताओ! ” यह सुनते ही उन सारे बच्चों में से एक बच्चा उठ कर आया और सर ने जो बोर्ड़ पर लाइन बनाई थी, उसे डस्टर से मिटाने लगा।
    तो सर ने उस बच्चों का हाथ पकड़ लिया और सारे बच्चों की तरफ देखकर कहने लगे कि ” लाइन को छोटी करके बताओ, वह भी बिना मिटाए! ” अब यह सुनते ही सारे बच्चे हैरान हो गए कि इस लाइन को बिना मिटाये कैसे छोटी करें!
    हर बच्चा अपना अपना दिमाग लगा रहा था, अपना अलग तरीके से सोच रहा था। थोड़ी देर के बाद उन सारे बच्चों में से एक बच्चा उठकर आता है और ब्लैक बोर्ड के पास खड़ा हो जाता है और सोचने लगता है।
    सोचते सोचते ही उस बच्चों ने सर के हाथ से चौक लिया और सर ने जो लाइन बनाई थी, उसके ऊपर एक बड़ी लाइन बना दी। इससे हुआ क्या इससे यह हुआ जो सर ने लाइन बनाई थी, वह छोटी हो गई उस बड़ी लाइन के सामने।
    फिर सर बच्चों को देखकर मुस्कुराये और सारे बच्चों से कहने लगे कि ” बच्चों अगर तुम्हें जिंदगी में कामयाब होना है, सक्सेसफुल होना है और अमीर बनना है तो कभी भी जिंदगी में किसी को गिराओ मत, किसी को छोटा मत करो।
    बल्कि तुम खुद जिंदगी में इतने बड़े बन जाओ, इतने कामयाब बन जाओ, और इतने आगे निकल जाओ की वह खुद-ब-खुद छोटा हो जाएगा। और यह सब कब होगा, जब आप मेहनत करोगे! हद पार मेहनत करोगे।
    इतनी मेहनत करो कि किस्मत खुद कहे की ले ले बेटा, यह तेरा ही हक़ है। मैं जानता हूं यह कहानी बहुत छोटी थी, लेकिन इससे जो हमें सीख मिलती है वह बहुत बड़ी सिख थी।

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    >>अपने सपनों को कभी नहीं छोड़ें।, Never give up on your dreams

    >>शार्क और चारा मछलियाँ, Shark and bait fishes

    >>आखिरी प्रयास, Last attempt

    >>सच्ची सेवा क्या होती है, What does true service occur

    >>लालची दूधवाला, Greedy milkman

    >>एक बुद्धिमान व्यक्ति, A wise man

    >>आर्यन और श्रेया की प्रेम कहानी, Love story of Aryan and shreya

    >>तेरे बिन, Your bin

    >>पति-पत्नी का सच्चा प्यार, Real love of a husband and wife

  • दिमाग का इस्तेमाल कर पक्ष में करें परिस्थितियाँ, Use mind create in side conditions

    एक शेर जंगल में शिकार पर निकला था।
    एक लोमड़ी अचानक उसके सामने आ गयी। लोमड़ी को लगा कि अब उसे कोई नहीं बचा सकता है, लेकिन उसने हार नहीं मानी और अपनी जान बचने के लिए एक तरकीब सोची।
    लोमड़ी ने शेर से कड़े शब्दों में कहा - तुम्हारे पास इतनी ताकत नहीं कि मुझे मार सको।
    यह सुनकर शेर थोड़ा अचंभित हुआ।
    उसने पूछा - तुम ऐसा कैसे कह सकती हो ? लोमड़ी ने अपनी आवाज और ऊँची करते हुए बोली - मैं तुम्हें सच बता देती हूँ। ईश्वर ने स्वयं मुझे इस जंगल और जंगल में रहने वाले सभी जानवरों का राजा बनाया है।
    यदि तुमने मुझे मारा तो यह ईश्वर के विरुद्ध होगा और तुम भी मर जाओगे।
    कुछ देर चुप रहने के बाद लोमड़ी ने कहा - अगर विश्वास नहीं हो रहा है तो तुम मेरे साथ जंगल घूमने चलो। तुम मेरे पीछे चलना और देखना कि जंगल के जानवर मुझसे कितना डरते हैं।
    शेर इसके लिए तैयार हो गया।
    लोमड़ी निडर होकर शेर के आगे-आगे चलने लगी। लोमड़ी के पीछे शेर को चलते देख कर जंगल के दूसरे जानवर डर कर भाग गये।
    कुछ देर जंगल में घूमने के बाद लोमड़ी ने शेर से सवाल किया - क्या तुम्हें मेरी बात पर विश्वास हुआ ?
    कुछ देर चुप रहने के बाद शेर ने कहा - तुम ठीक कहती हो। जंगल की राजा तुम्हीं है।
    परिस्थितियाँ कितनी भी विपरीत क्यों न हो हम अपने दिमाग का इस्तेमाल कर उसे अपने पक्ष में कर सकते हैं। हमारा दिमाग प्रोग्राम के आधार पर काम करने वाला कंप्यूटर नहीं है।
    दिमाग को आउट ऑफ़ बॉक्स सोचने की क्षमता है। हर समस्या का समाधान तलाशने की ताकत है, यह तभी संभव होगा जब हूँ विपरीत परिस्थितियाँ में भी अपना धैर्य बरकरार रखेंगे।

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  • सच्ची सेवा क्या होती है, What does true service occur

    एक बार दो पड़ोसी राज्यों में युद्ध छिड़ गया। बहुत भयानक युद्ध चल रहा था।
    युद्ध में बहुत सारे सैनिक घायल हो जाते थे। दोनों राज्यों की सेना में ऐसी कर्मचारी भर्ती किए गए थे जिनका काम था युद्धस्थल पर जाकर अपनी-अपनी सेना के घायल सैनिकों की मरहम-पट्टी करना और उन्हें पानी पिलाना।
    उनमें से एक राज्य की सेना का एक कर्मचारी था पंडवरण युद्धस्थल पर जाता और घायल सैनिकों को पानी पिलाता और उनकी मरहम-पट्टी करता।
    उसे जो भी घायल सैनिक नजर आता चाहे वह उसकी अपनी सेना का हो या विरोधी राज्य की सेना का हो, उसकी सेवा करता।
    इस बात पर कुछ सैनिक ने राजा को शिकायत की कि पंडवरण विरोधी राज्य के घायल सैनिकों को भी मरहम-पट्टी करता और उन्हें पानी पिलाता है।
    राजा ने उसे तुरंत बुलाया और उससे पूछा - पंडवरण तुम्हें घायल सैनिक की सेवा के लिए रखा गया है, किन्तु तुम तो विरोधी राज्य के सेना के घायल सैनिकों को भी सेवा कर रहे हो। ऐसा क्यों ?
    पंडवरण बोला - महाराज मेरा कर्म है कि मैं घायलों की सेवा करूं। मैं जब युद्ध स्थल पर जाता हूँ तो मुझे सिर्फ दर्द से कहारते घायल मानव नजर आते हैं। मुझे उनमें अपना या विरोधी नजर नहीं आता है। मुझे सिर्फ अपना कर्म याद रहता है इसलिए मैं हर घायल की सेवा करता हूँ।
    पंडवरण की बात सुनकर राजा ने उसे गले से लगा लिया और कहा - पंडवरण तुम सच्चे सेवक हो।

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    कथा का सार यह है कि सेवा अपने या पराए को देखकर नहीं की जाती। जिस सेवा में पक्षपात हो वह सेवा नहीं होती।
    संपूर्ण मानव जाती की एक दृष्टि से सेवा ही सच्ची सेवा है। वह सहज दयावश और मानवता के नाते की जानी चाहिए।