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चीजों का सामना करते समय ध्यान से सोचें , Think carefully while facing things
यह गांव में एक व्यापारी रहता था, उसकी एक खूबसूरत बेटी थी। एक बार उसे व्यापारी पर बहुत ज्यादा कर्ज हो गया था और जिस आदमी से उसे व्यापारी ने कर्ज लिया था, वो उसी गांव का था, और बहुत ही घटिया आदमी था। तो ब्यापारी उस आदमी का कर्ज चुका नहीं पा रहा था,
तो उस आदमी ने सारे गांव वालों को जमा किया, और व्यापारी के घर पर जाकर व्यापारी से कहा कि ” अगर तुम मेरा कर्जा दे नहीं पा रहे हो तो अपनी बेटी की शादी मुझ से कर दो। ” यह सुनने के बाद भी वह व्यापारी चुप रह। क्योंकी वो मजबूर था!
और ये सारी बातें, घर में बैठी उस व्यापारी की बेटी सुन रही थी। थोड़ी देर के बाद उस आदमी ने गांव वालों और व्यापारी से कहा की ” ठीक है! में एक थैली में सफेद और एक काला पत्थर डालूंगा, और इसकी बेटी को थैली में से, कोई एक पत्थर निकालना पड़ेगा।
अगर सफेद पत्थर निकला तो मैं कर्ज भी माफ कर दूंगा और इसकी बेटी से शादी भी नहीं करूंगा। लेकिन अगर काला पत्थर निकला, तो कर्जा तो मैं माफ कर दूंगा, मगर इसको अपनी बेटी से मेरी शादी करवानी पड़ेगी।
व्यापारी की लड़की इस बात के लिए राजी हो गई और सारे गांव वाली भी। उस आदमी ने थैली के अंदर सबके सामने दो पत्थर डालें। लेकिन बड़े ही चालाकी से उस आदमी ने दोनों ही पत्थर उस थैली में काले डाले थे।
और यह व्यापारी की बेटी को दिख गया था के थैली के अंदर दोनों ही पत्थर काले थे। अब वह लड़की सोंच में पड़ गई थी, कि मैं जो भी पत्थर निकालूंगी वहकाले ही पत्थर होंगे। और अगर काला पत्थर निकला, तो कर्जा माफ हो जाएगा, लेकिन मुझे उससे शादी करनी पड़ेगी।
और अगर मैंने सारे गांव वालों को यह बता दी, कि इस आदमी ने थैली में दोनों ही पत्थर काले डाले हैं, तो कर्ज़ा भी माफ नहीं होगा और यह आदमी, आज नहीं तो कल मेरे बाबा से बदला जरूर लेगा।
लड़की यह सोच ही रही थी की लड़की को तभी थैली से पत्थर निकालने को कहा गया। लड़की ने थैली में हाथ डाला और एक पत्थर बाहर निकाला, और बिना किसी को बताएं उस पत्थर को जमीन पर गिरा दिया।
और जमीन पर गिरने के बाद, वह पत्थर दूसरे पत्थरों में मिल गया। तभी लड़की ने सबसे कहा कि ” अब कैसे पता चलेगा, कि मैंने जो पत्थर निकला था वह सफेद था या काला था? “
लड़की ने कहा थैली में जो दूसरा पत्थर है, उसे देखो! अगर थैली में सफेद पत्थर है, तो मेने काला पत्थर निकला था। और अगर थैली में काला पत्थर है, तो मेने सफेद पत्थर निकला था।
और थैली में तो सिर्फ काले ही पत्थर थे। और सभी गांव वालों ने यह समझ लिया, की लड़की ने जो पत्थर निकला था वह सफेद था। इसलिए व्यापारी का कर्ज भी माफ हो गया और उसकी बेटी को, उस आदमी से, शादी भी नहीं करनी पड़ी।
जिंदगी में इंसान कई बार मजबूर हो जाता है, और उसके सामने जो हालत होती है, उसे उसी के हिसाब से चलना पड़ता है।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है: जब भी आप मजबूर हो जाओ और मजबूरी में आपका कोई फायदा उठाना चाहता हो, दो इनोसेंट मत बनो, बल्कि अपने दिमाग का इस्तेमाल करो। जितने इनोसेंट बनने की कोशिश करोगे, लोग उतना ज्यादा आपको चीट करेंगे।
अब इसका मतलब यह नहीं कि आप लोगों को गालियां देना ही शुरू कर दो, बल्कि इसका मतलब यह है कि आप समंदर की तरह बनो। मतलब यह है कि आप समंदर की तरह खामोश रहो, लेकिन उसकी गहराई की तरह अपने दिमाग में नॉलेज रखो।
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निशांत और हेमा की प्रेम कहानी, The love story of nishant and hema
यह कहानी है एक शहरी क्षेत्र की, जहां निशांत और हेमा की है जो अलग-अलग दुनियाओं से थे।
जिनके सपने और रहन-सहन एक दूसरे से बहुत अलग थे।
निशांत, एक रोमांटिक और सपने में खोए हमेशा खोये रहने वाले युवक था।
वह मेहनत काम करता लेकिन सपने बड़े-बड़े देखता रहता वही हेमा,
एक स्वतंत्र और साहसी लड़की जिसका सपना था अपनी पेशेवर ज़िन्दगी में कुछ अद्भुत करने का।
वह बहुत मेहनती थी।
एक दिन, निशांत और हेमा की बातचीत का आरंभ हुआ जब वे एक सामाजिक कार्यक्रम में मिले।
वहां, निशांत ने हेमा के सपनों की बातें सुनीं और हेमा ने निशांत की प्रेरणा को देखा।
उनकी बातचीतों में, एक दूसरे के सपनों का समर्थन और समझदारी बढ़ती गई।
दोनों को एक-दूसरे से बात करना अच्छा लगा।
फिर वो दोनों एक दूसरे का नंबर शेयर किया और दोस्ती का हाथ बढ़ाया दोनों।
धीरे-धीरे, निशांत और हेमा एक दूसरे के साथ अधिक समय बिताने लगे और मिलने लगे।
काम में भी एक दूसरे का हाथ बढ़ाने लगे और उनकी दोस्ती कब प्यार में बदला इस बात का अहसास नहीं उनकों ।
उनका साथ एक-दूसरे के सपनों को पूरा करने की ऊर्जा पैदा करता गया।
बहुत सपने उनलोग ने पूरा किया।
दोनों के परिवार भी उनके दोस्ती से खुश थे।
वो लोग चाहते थे की दोनों के रिश्ते शादी में बदले लेकिन हेमा और निशांत आगे बढ़ ही नहीं रहे थे।
ऐसे ही कुछ दिन बीत गया।
फिर एक दिन निशांत के माँ ने उसे समझाया की हेमा अच्छी लड़की है तू उसे पसंद करते हो और प्यार भी करते हो तो उसे बोल क्यों नहीं देते।
तब निशांत ने कहाँ की हेमा मना कर दी तो।
तब माँ बोली की एक बार बात तो करे वो। फिर एक
एक दिन, निशांत ने अपनी भावनाओं को हेमा के सामने रख दिया और हेमा ने भी अपनी भावनाओं को
साझा किया वो भी उस से प्यार करती थी ।
उनका प्यार बढ़ता गया और उन्होंने एक दूसरे से वादा किया कि वे एक-दूसरे के साथ हमेशा रहेंगे।
शार्क और चारा मछलियाँ, Shark and bait fishes
अपने शोध के दौरान एक समुद्री जीवविज्ञानी ने पानी से भरे एक बड़े टैंक में शार्क को डाला. कुछ देर बाद उसने उसमें कुछ चारा मछलियाँ डाल दी। चारा मछलियों को देखते ही शार्क तुरंत तैरकर उनकी ओर गई और उन पर हमला कर उन्हें खा लिया। समुद्री जीवविज्ञानी ने कुछ और चारा मछलियाँ टैंक में डालीं और वे भी तुरंत शार्क का आहार बन गईं। अब समुद्री जीवविज्ञानी ने एक कांच का मजबूत पारदर्शी टुकड़ा उस टैंक के बीचों-बीच डाल दिया। अब टैंक दो भागों में बंट चुका था। एक भाग में शार्क थी। दूसरे भाग में उसने कुछ चारा मछली डाल दीं। विभाजक पारदर्शी कांच से शार्क चारा मछलियों को देख सकती थी। चारा मछलियों के देख शार्क फिर से उन पर हमला करने के लिए उस ओर तैरी। लेकिन कांच के विभाजक टुकड़े से टकरा कर रह गई। उसने फिर से कोशिश की। लेकिन कांच के टुकड़े के कारण वह चारा मछलियों तक नहीं पहुँच सकी।
शार्क ने दर्जनों बार पूरी आक्रामकता के साथ चारा मछलियों पर हमला करने की कोशिश की। लेकिन बीच में कांच का टुकड़ा आ जाने के कारण वह असफल रही. कई दिनों तक शार्क उन कांच के विभाजक के पार जाने का प्रयास करती रही. लेकिन सफल न हो सकी. अंततः थक-हारकर उसने एक दिन हमला करना छोड़ दिया और टैंक के अपने भाग में रहने लगी। कुछ दिनों बाद समुद्री जीवविज्ञानी ने टैंक से वह कांच का विभाजक हटा दिया. लेकिन शार्क ने कभी उन चारा मछलियों पर हमला नहीं किया क्योंकि एक काल्पनिक विभाजक उसके दिमाग में बस चुका था और उसने सोच लिया था कि वह उसे पार नहीं कर सकती।
जीवन में असफ़लता का सामना करते-करते कई बार हम अंदर से टूट जाते हैं और हार मान लेते हैं। हम सोच लेते हैं कि अब चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, सफ़लता हासिल करना नामुमकिन है और उसके बाद हम कभी कोशिश ही नहीं करते। जबकि सफ़लता प्राप्ति के लिए अनवरत प्रयास आवश्यक है। परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं। इसलिये अतीत की असफ़लता को दिमाग पर हावी न होने दें और पूरी लगन से फिर मेहनत करें। सफलता आपके कदम चूमेगी।
एक लड़के और पत्थर की कहानी, A story of a boy and a stone
एक बार की बात है सुरज नाम का एक लड़का था, एकदिन सुबह मे सुरज टहल रहा था, तभी उसकी नज़र एक छोटी सी पत्थर पर पड़ी। जैसे ही सुरज ने उस पत्थर को देखा, उसने उसे उठाया ओर जितना ज़ोर से फेंक सकता था, फेंक दिया। पत्थर एक, दो बार उछला और फिर कुछ दूर जाकर रूक गया।
सुरज चकित रह गया, उसने अब तक कभी ऐसा नहीं देखा था । उसने फिर से कोशिश करने का फैसला किया, इस बार सुरज ने पत्थर को ओर जोर से फेंका । इस बार पत्थर पहले से अधिक दूर तक दूर जाकर रूका ।
सुरज इतना उत्साहित था कि वह पत्थर फेंकता रहा, हर बार उसे और जोर से फेंकता रहा। प्रत्येक फेंके जाने पर पत्थर ओर दूर तक जाता रहा, जब तक कि पत्थर सुरज दृष्टि से गायब नहीं हो गया ।
सुरज एक चट्टान पर बैठ गया और सोचने लगा कि अभी क्या हुआ था। उसे एहसास हुआ कि वह छोटा सा पत्थर केवल इसलिए इतनी दूर तक यात्रा करने में सक्षम था क्योंकि उसने उसे ऐसा करने की शक्ति दी थी। उसने जितनी जोर से पत्थर को फेंका, वह उतनी ही दूर तक गया ।
सुरज को एहसास हुआ कि यही सिद्धांत उसके जीवन पर भी लागू होता है। यदि वह महान चीजें हासिल करना चाहता है, तो उसे खुद को ऐसा करने की शक्ति देनी होगी। उन्हें अपने लिए चुनौतीपूर्ण लक्ष्य निर्धारित करना होगा और फिर उन्हें हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी,
सुरज ने खुद से वादा किया कि वह अपने सपनों को कभी नहीं छोड़ेगा। वह कड़ी मेहनत करते रहेंगे और खुद पर विश्वास करना कभी नहीं छोड़ेंगे। वह जानता था कि यदि उसने ऐसा किया, तो वह सब कुछ हासिल कर सकता है जो-जो उसने ठाना है।
आप जो भी ठान लोगे उसे हासिल कर सकते हैं, बशर्ते आप खुद पर विश्वास रखें और कभी हार न मानें। आप जितनी मेहनत करेंगे, उतना ही आगे बढ़ेंगे। अपने लिए चुनौतीपूर्ण लक्ष्य निर्धारित करने से कभी नही डरें। खुद पर विश्वास रखें और अपने सपनों को कभी न छोड़ें।
जादुई संतरा, Magic orange
एक समय की बात है, एक गांव में सोनू नाम का एक छोटा सा लड़का रहता था। उसे घूमने फिरने का और नई चीजें जानने का बड़ा शौक था। एक दिन जब वह जंगल में घूम रहा था, तो उसे एक संतरे का जादुई पेड़ दिखाई देता है।
वह पेड़ बाकी पेड़ों से बिल्कुल अलग दिख रहा था। जब सोनू एक संतरे को चखता है, तो उसे अपने अंदर भरपूर ऊर्जा महसूस होती है और उसका दिमाग पहले से बहुत तेज हो जाता है।
सोनू उस जादुई संतरे का इस्तेमाल अपने खुद के फायदे के लिए करने लगा। उसे हर चीज पहले ही पता चल जाता और हर कठिन से कठिन प्रश्नों को हल कर लेता था। दूर-दूर से लोग उसकी इस प्रतिभा को देखने आते थे।
जैसे-जैसे समय बीतता गया सोनू की शक्तियां कम होती गई। पेड़ पर संतरों की चमक भी कम हो रही थी और धीरे-धीरे उनकी भी शक्तियां खत्म होने लगी थी।
जल्दी ही सोनू को यह एहसास होता है कि, वह अपनी खुद की प्रतिभा को नजरअंदाज करते हुए जादुई संतरे की शक्ति पर बहुत ज्यादा निर्भर हो गया है।
सोनू को अपनी गलतियों का एहसास होता है और वह जादुई संतरे के पेड़ के पास वापस जाता है। वह अपने लालची स्वभाव के लिए माफी मांगता है और वादा करता है कि अपनी काबिलियत का उपयोग वह अच्छे कामों के लिए करेगा। फिर अचानक से पेड़ के बचे हुए संतरों में वापस चमक आ जाती है।
उस दिन के बाद से सोनू यह समझ गया कि असली शक्ति हमारे अंदर ही होती है और हम अपनी खुद की कौशल और प्रतिभा का इस्तेमाल करके ही दुनिया में बदलाव और खुशी ला सकते हैं।
“हमें सफलता प्राप्त करने के लिए किसी जादू या शक्ति के बाहरी स्रोतों पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। बल्कि हमें अपनी क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए और उनका उपयोग करके दुनिया में सकारात्मक बदलाव लाना चाहिए।”
अनन्त संबंधों की नींव, Foundation of everlasting relationships
एक समय की बात है, भारत में एक छोटे से गांव में राज और मीरा नामक दो पड़ोसियों का निवास था। वे बचपन से ही एक-दूसरे को जानते थे और हमेशा सबसे अच्छे दोस्त रहे थे। जैसे-जैसे वे बड़े होते गए, उनका रिश्ता और भी मजबूत होता गया और वे एक-दूसरे के साथ ज्यादा समय बिताने लगे।
जब वे दसवीं कक्षा में आए, तब राज को एहसास होने लगा कि मीरा के प्रति उसके भावनाएँ दोस्ती से आगे बढ़ गई हैं। वह मीरा के हंसी, प्यारी आदतों और उसकी चमकदार आंखों में खो जाता था। लेकिन वह दोस्ती को खत्म करने का डर से अपने प्रेम का इज़हार करने से घबराया।
राज को अनजाने में, मीरा भी एकीकृत थी। वह हमेशा राज के साथ वक़्त बिताने में आनंद लेती थी और उसकी मौजूदगी में आराम पाती थी। लेकिन उसे यह सोचकर रुकावट आ गई कि यदि उसका दोस्त उसी तरह नहीं महसूस करता है जैसा कि वह महसूस करती है, तो उसे खोने का ख़याल उसे इज़हार नहीं करने देता।
एक शाम, स्थानीय त्योहार के दौरान, राज और मीरा एक साथ बाज़ार में सैर कर रहे थे। भीड़ और रंगीन रौनक के बीच, राज ने अपने भावों को साझा करने के लिए साहस जुटाया। उसने एक शांतिपूर्ण फव्वारे के पास रुक कर, मीरा की आंखों में गहराई से देखा और उसे अपने प्यार का इज़हार किया। उसका दिल धड़क रहा था जैसे वह उसके जवाब का इंतज़ार कर रहा था।
मीरा शर्म से लाल हो गई, उसके दिल में उत्साह भरा, और आंसू उसकी आँखों में आ गए। उसे लगा कि यह पल उसने बहुत पल पहले से इंतज़ार किया था, लेकिन यह भी डर था कि उनकी दोस्ती के रिश्ते को खत्म करने से उन्हें क्या नुकसान हो सकता है। उसने गहरी साँस ली और इज़हार किया कि उसे राज से प्रेम हो गया है।
आश्चर्य और ख़ुशी ने राज को आवेगित किया, और वे हाथ मिलाए खड़े हो गए, समझते हुए कि वे एक दूसरे के लिए बने हैं। उनके परिवार जल्द ही उनके प्यार के बारे में जानकार हुए, और उनकी आशीर्वाद से, राज और मीरा का रिश्ता मजबूत हुआ। वे एक-दूसरे के साथ मुसीबतों का सामना करने के लिए तैयार रहे, एक-दूसरे का साथ देते, और प्रोत्साहित करते रहे।
हालांकि, जैसे ही एक प्रेम कहानी में होता है, उनके रास्ते पर चुनौतियां आई। जब वे कॉलेज में प्रवेश करने के लिए चले गए, तो दूरस्थ रहने के समय की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। लेकिन उनका प्यार अटूट रहा, क्योंकि वे हर दिन बातचीत करते, अपने अनुभव साझा करते, और एक-दूसरे के प्रति वफ़ादार रहने का वादा करते थे।
अपने अध्ययन पूरा करने के बाद, राज और मीरा अपने गांव वापस लौटे, जहां से उन्होंने शादी करने का निर्णय किया। उनके परिवार ने उनके विवाह की खुशी मनाई, उनकी ख़ूबसूरत प्रेम कहानी का सम्मान किया।
और ऐसे ही, राज और मीरा हमेशा के लिए खुश रहे, साबित करते हुए कि वास्तविक प्रेम हर कठिनाई को अधीन बना सकता है और सबसे मजबूत रिश्ते अक्सर सबसे पवित्र दोस्ती से ही खिलते हैं। उनकी प्रेम कहानी ने उनके गांव में बहुतों को प्रेरित किया, सबको याद दिलाते हुए कि प्रेम, विश्वास और दोस्ती एक दूसरे के लिए एक सदाबहार संबंधों के आधार हैं।
अलग सोचो, Think differently
एक आदमी बहुत गरीब परिवार से था, वह बहुत दिनों से नौकरी की तलाश कर रहा था, लेकिन उसे अपने शहर में नौकरी नहीं मिल पा रही थी। ऐसे में उसने दूसरे शहर में नौकरी तलाश करने का फैसला किया। उसने अगले ही दिन ट्रेन पकड़ी और दूसरे शहर की तरफ निकल गया।
उसके मां ने एक टिफिन में रोटियां रख दी थी, वह आदमी इतना गरीब था कि उसके घर में सब्जी नहीं बनती थी क्योंकि सब्जियों के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में बस उसकी मां ने रोटियां ही बनाई थी और उसको टिफिन में रख दी थी।
जब उसका आधा सफर तय हो गया तो उसे भूख लगी, उसने टिफिन निकाला और रोटियां खाने लगा। जिस तरह से वह रोटियां खा रहा था उसके आसपास बैठने वाले लोग उसे देख रहे थे। वह पहले रोटी तोड़ता फिर टिफिन में घुमाता, जैसे कि उस टिफिन में सब्जी हो, फिर निवाला बनकर अपने मुंह में डालता।
ऐसा लग रहा था कि मानो रोटी के साथ सब्जी भी खा रहा है। लोग उसे हैरान से देख रहे थे वह ऐसा क्यों कर रहा है, उन्हें समझ नहीं आ रहा था! एक आदमी ने उससे पूछ ही लिया की ” भाई तुम्हारे पास में केवल रोटी ही है, तो तुम रोटी को घुमाकर मुंह में क्यों डाल रहे हो? “
उस आदमी ने जवाब दिया कि हां मेरे पास केवल रोटी ही है। लेकिन इस खाली टिफिन में रोटी घूमर में यह सोचकर खा रहा हूं कि मैं रोटी के साथ आचार भी खा रहा हूं। दूसरे व्यक्ति ने पूछा ” क्या इससे उसे आदमी को अचार का स्वाद आता है?”
उस आदमी ने कहा कि मैं रोटी अचार सोच कर खा रहा हूं तो मुझे स्वाद भी आ रहा है। जब उसके आसपास बैठने वाले लोगों ने यह बात सुनी तो एक आदमी बोला कि अगर सोचा ही था तो आचार्य क्यों सोचा? मटर पनीर या शाही पनीर सोच लेते! इस तरह तुम उन सब्जियों का भी मजा ले पाते।
तो दोस्तों इसे हमें यह सीख मिलती है बड़ा सोचो तभी सफलता बड़ी होगी, अगर आदमी के सपने बड़े होंगे तभी सफलता भी बड़ी होगी इसके लिए आदमी को बड़ा सोचा होगा। जिंदगी में अगर कुछ बड़ा करना है तो आदमी को अपनी सोच बड़ी रखनी चाहिए अगर आदमी के सपने बड़े होंगे तभी सफलता भी बड़ी मिलेगी। लेकिन शुरुवात हमेशा छोटी से ही होती है। बून्द-बून्द से सममानदर!
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पति-पत्नी का सच्चा प्यार, Real love of a husband and wife
एक आदमी ने एक बहुत ही खूबसूरत लड़की से शादी की।
शादी के बाद दोनो की ज़िन्दगी बहुत प्यार से गुजर रही थी।
वह उसे बहुत चाहता था और उसकी खूबसूरती की हमेशा तारीफ़ किया करता था।
लेकिन कुछ महीनों के बाद लड़की चर्मरोग से ग्रसित हो गई और धीरे-धीरे उसकी खूबसूरती जाने लगी।
खुद को इस तरह देख उसके मन में डर समाने लगा कि यदि वह बदसूरत हो गई, तो उसका पति उससे नफ़रत करने लगेगा और वह उसकी नफ़रत बर्दाशत नहीं कर पाएगी।
इस बीच एकदिन पति को किसी काम से शहर से बाहर जाना पड़ा।
काम ख़त्म कर जब वह घर वापस लौट रहा था, उसका हो गया।
में उसने अपनी दोनो आँखें खो दी।
लेकिन इसके बावजूद भी उन दोनो की जिंदगी सामान्य तरीके से आगे बढ़ती रही।
समय गुजरता रहा और अपने चर्मरोग के कारण लड़की ने अपनी खूबसूरती पूरी तरह गंवा दी।
वह बदसूरत हो गई, लेकिन अंधे पति को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था।
इसलिए इसका उनके खुशहाल विवाहित जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
वह उसे उसी तरह प्यार करता रहा।
एकदिन उस लड़की की मौत हो गई।
पति अब अकेला हो गया था। वह बहुत दु:खी था। वह उस शहर को छोड़कर जाना चाहता था।
उसने अंतिम संस्कार की सारी क्रियाविधि पूर्ण की और शहर छोड़कर जाने लगा।
तभी एक आदमी ने पीछे से उसे पुकारा और पास आकर कहा,
“अब तुम बिना सहारे के अकेले कैसे चल पाओगे?
इतने साल तो तुम्हारी पत्नि तुम्हारी मदद किया करती थी।
पति ने जवाब दिया, दोस्त! मैं अंधा नहीं हूँ! मैं बस अंधा होने का नाटक कर रहा था।
क्योंकि यदि मेरी पत्नि को पता चल जाता कि मैं उसकी बदसूरती देख सकता हूँ, तो यह उसे उसके रोग से ज्यादा दर्द देता।
इसलिए मैंने इतने साल अंधे होने का दिखावा किया।
वह बहुत अच्छी पत्नि थी। मैं बस उसे खुश रखना चाहता था।
खुश रहने के लिए हमें भी एक दूसरे की कमियो के प्रति आखे बंद कर लेनी चाहिए..
और उन कमियो को नजरन्दाज कर देना चाहिए...।
एक चित्रकार की कहानी, Story of a painter
एक पेंटर था, जो बहुत ही अच्छी पेंटिंग्स बनाया करता था। एक बार उस पेंटर ने ऐसी पेंटिंग बनाई जिसके बाद, उसे लगने लगा था की यह पेंटिंग उसकी जिंदगी की सबसे अच्छी पेंटिंग बनी है।
जिसमें कोई भी गलती नहीं थी। वह बहुत ही खुश हुआ और सभी लोगों को अपनी वो पेंटिंग बताने लगा। उसने पेंटिंग अपने एक दोस्त को दिखाई और उस दोस्त को यह कहा: कि ये मेरी जिंदगी की सबसे अच्छी पेंटिंग है, इसमें कोई भी गलती नहीं है।
उसके दोस्त ने उससे कहा कि अगर तुम्हें सच में यह देखना है, की इस पेंटिंग में कोई भी गलती नहीं है, तो तुम इस पेंटिंग को एक चौराहे पर लगा दो, जहां पर लोग आते जाते रहते हैं।
और वहां एक बोर्ड लगा दो और उस पर लिख दो कि अगर आपको इस पेंटिंग में कोई भी गलती दिख रही है, तो वहां पर एक काला निशान लगा दीजिए।
उस पेंटर ने वैसा ही किया, अपनी पेंटिंग को एक चौराहे पर लगा दिया और वहां पर एक कला ब्रश रखकर वहां से चला गया। जब वह पेंटर शाम को वापस आया तो उसने देखा कि उसकी पेंटिंग पर इतने निशान थे, के वो पेंटिंग पूरी काली हो गई थी।
वो पेंटर, रोते हुए अपनी उसी दोस्त के पास गया और उसको सारी बात बताई और लगा कि मुझे तो लगता था कि इस पेंटिंग में कोई भी गलती नहीं है। लेकिन लोगों ने तो इसमें बहुत सारी गलतियां निकाल ली।
सब कुछ सुनने के बाद, उसके दोस्त ने उससे कहा: कि तुम एक और सेम टू सेम ऐसी ही पेंटिंग बनाओ और उस पेंटिंग को उसी चौराहे पर रख देना। लेकिन अब वहां पर लिखना की इस पेंटिंग में आपको जहां पर भी गलती दिख रही है, वहां सुधार कर दीजिए।
उस पेंटर ने ऐसा ही किया एक वैसी ही पेंटिंग बनाई और उसे उसी चौराहे पर रख दिया। और वहां पर कुछ ब्रश भी रख दिए और वहां से चला गया।
जब शाम हुई और वह पेंटर वापस आया तो उसने देखा कि उस पेंटिंग में कुछ भी बदला हुआ नहीं था, वह पेंटिंग जैसी की वैसी ही थी। उसमें कुछ भी सुधार या बदलाव नहीं था। पेंटर यह देखकर हैरान हो गया और अपने दोस्त को सारी बातें बताई।
उसके दोस्त ने उससे कहा: कि दोस्त! इस दुनिया में गलतियां निकालने वाले बहुत मिलते हैं, जो एक सेकंड में अच्छी वाली चीज में गलती निकाल देते हैं। लेकिन अगर उनसे कहा जाए की गलती तो निकाल दिया आपने,
अब इसमें सुधार भी कर दीजिए, तो कोई नहीं करता, कोई भी सामने नहीं आता। इसीलिए हमें लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए।
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झूठ जब सच जैसा लगे, धोखा न खाएं, Lie when look like true, don't be deceived
एक समय की बात है एक गाँव में एक ब्राह्मण रहता था।
एक बार किसी परिवर ने उसे अपने यहा ब्राह्मण भोज पर बुलाया और दान में उसे एक बकरा दिया।
बकरे को पाकर वो बड़ा खुश हुआ और खुशी से अपने घर जाने लगा। रास्ता लम्बा और सुनसान था। रास्ते में ब्राह्मण के कंधे पर बकरे को देखकर तीन ठग के मन में उस बकरे को चुराने का विचार आया। तीनों ने उसे हथियाने की योजना बना ली। तीनों अलग-अलग हो गए।
ब्राह्मण के पास से गुजरते हुए एक ठग ने उनसे कहा: क्या पंडितजी एक ब्राह्मण होकर एक कुत्ते को अपने कंधो पर उठा रखा है आपने!
ब्राह्मण ने कहा: अंधे हो क्या? कुछ भी अनाप-शनाप बोल रहे हो? तुम्हें दिखाए नहीं देता ये कुत्ता नहीं बकरा है। इस पर ठग ने कहा: मेरे काम था आपको बताना, आगे आपकी मर्जी!
थोड़ी दूर चलने के बाद ब्राह्मण को दूसरा ठग मिला।
उसने ब्राह्मण से कहा: पंडितजी क्या आप नहीं जानते उच्च कुल के लोगों को अपने कंधो पर कुत्ता नहीं लादना चाहिए। ब्राह्मण ने उसे भी झिड़का दिया और आगे बढ़ गया।
थोड़ी और दूर आगे जाने के बाद ब्राह्मण को तीसरा ठग मिला और उसने पूछा: पंडितजी इस कुत्ते को पीठ पर लाद के जाने का क्या कारण है ?
इस बार ब्राह्मण के मन में शक आया कि कही उसकी ही आंखे तो धोखा नहीं खा रही है, इतने लोग तो झूट नहीं बोल सकते। और उसने रास्ते में थोड़ा आगे जाकर बकरे को अपने कंधे से उतार दिया और अपने घर की ओर आगे बड़ गया।
उसके आगे जाते ही तीनों ठग बकरे को वहां से उठा ले गए और उसे मार कर उसकी दावत खाई। तो दोस्तों इस कहानी से यह सीख मिलती है कि कई बार झूट को भी मेजोरिटी में बोलने पर वह सच जैसा मालूम पडता है और लोग धोखे का शिकार हो जाते है।